Centres Of Excellence

To focus on new and emerging areas of research and education, Centres of Excellence have been established within the Institute. These ‘virtual' centres draw on resources from its stakeholders, and interact with them to enhance core competencies

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उत्कृष्टता केंद्र

अनुसंधान और शिक्षा के नए और उभरते क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए, संस्थान के भीतर उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किए गए हैं। ये 'वर्चुअल' केंद्र अपने हितधारकों से संसाधनों पर आकर्षित होते हैं, और कोर दक्षताओं को बढ़ाने के लिए उनके साथ बातचीत करते हैं

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Faculty

Faculty members at IIMB generate knowledge through cutting-edge research in all functional areas of management that would benefit public and private sector companies, and government and society in general.

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संकाय

भाप्रसंबें के संकाय सदस्य प्रबंध के सभी कार्यात्मक क्षेत्रों में अद्यतन शोध के माध्यम से ज्ञान उत्पन्न करते हैं जिससे सामान्यतः सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र कंपनियों और सरकार एवं समाज को लाभ प्राप्त होगा ।

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IIMB Management Review

Journal of Indian Institute of Management Bangalore

आईआईएमबी मैनेजमेंट रिव्यू

भारतीय प्रबंध संस्थान बेंगलूर की पत्रिकाएँ

IIM Bangalore offers Degree-Granting Programmes, a Diploma Programme, Certificate Programmes and Executive Education Programmes and specialised courses in areas such as entrepreneurship and public policy.

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भाप्रसं बेंगलूर दीर्घावधि कार्यक्रम, उद्यमवृत्ति एवं सार्वजनिक नीति जैसे क्षेत्रों में दीर्घावधि कार्यक्रम, कार्यपालक शिक्षा कार्यक्रम एवं विशिष्ट पाठ्यक्रम प्रस्तुत करता है ।

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About IIMB

The Indian Institute of Management Bangalore (IIMB) believes in building leaders through holistic, transformative and innovative education

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भाप्रसंबें के विषय में

भारतीय प्रबंध संस्थान बेंगलूर (भाप्रसंबें) समग्र, रूपांतकारी एवं नवीन शिक्षा के माध्यम से नेताओं का निर्माण करने में विश्वास करता है ।

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पाठ्यचर्या

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कार्यक्रम की संरचना (2015 तथा इसके बाद के बैचों के लिए)

 

कार्यक्रम के दो चरण हैं : पाठ्यक्रम एवं शोध प्रबंध अनुसंधान । पहले चरण में पहले दो वर्ष शामिल हैं तथा इसके निम्‍नलिखित घटक हैं : (क) पाठ्यक्रम, (ख) स्‍वतंत्र अध्‍ययन, (ग) पहले शैक्षिक वर्ष के अंत में ग्रीष्‍म शोध परियोजना, और (घ) दूसरे शैक्षिक वर्ष के अंत में ग्रीष्‍म पेपर । पहले चरण को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए दूसरे शैक्षिक वर्ष के अंत में व्‍यापक (लिखित एवं मौखिक) परीक्षा में उत्‍तीर्ण होने की आवश्‍यकता होगी । इसके बाद छात्र दूसरा चरण अर्थात् शोध प्रबंध कार्य शुरू करेंगे ।

एफपीएम की पूरी अवधि के दौरान अनुसंधान सहायक (आरए) या शिक्षण सहायक (टीए) के रूप में काम करने के लिए आवश्‍यकता होती है ।

पाठ्यक्रम (2015 तथा इसके बाद के बैचों के लिए)

कार्यक्रम के पहले दो वर्षों के दौरान पाठ्यक्रम पढ़ाया जाता है तथा छात्रों से इस अवधि में 18 तीन-क्रेडिट पाठ्यक्रम लेने की आवश्‍यकता होती है । इनमें से नौ पाठ्यक्रम पहले वर्ष में और 9 दूसरे वर्ष में लेने चाहिए । इस कार्यक्रम में पाठ्यक्रमों की दो श्रेणियाँ हैं :
(क) कोर (अर्थात् आवश्‍यक) पाठ्यक्रम और (ख) वैकल्पिक (अर्थात् संस्‍तुत) पाठ्यक्रम ।

क्रेडिट, पाठ्यक्रम, छूट एवं जीपीए की आवश्‍यकताएँ

  • कोर (अर्थात् आवश्‍यक) पाठ्यक्रम :: प्रत्‍येक क्षेत्र कोर पाठ्यक्रमों का एक सेट निर्धारित करता है । इस क्षेत्र में सभी छात्रों द्वारा इन पाठ्यक्रमों को अनिवार्य रूप से लेने की आवश्‍यकता होती है तथा ये विशेषज्ञता के कोर क्षेत्र में मजबूत संकल्‍पनात्‍मक नींव तैयार करने में छात्रों को समर्थ बनाते हैं । ये उस क्षेत्र द्वारा विशिष्‍ट रूप से प्रदान किए जाते हैं जिसमें छात्र दाखिला लेता है । पाठ्यक्रमों की इस श्रेणी में अन्‍य क्षेत्रों द्वारा प्रदान किए जाने वाले पाठ्यक्रम भी शामिल हो सकते हैं क्‍योंकि इतनी मजबूत नींव के लिए अनुसंधान के बुनियादी उपकरणों के ज्ञान एवं संबद्ध क्षेत्रों से परिप्रेक्ष्‍य की भी आवश्‍यकता होगी । इनमें से अधिकांश पाठ्यक्रम वाचस्पति स्‍तर के पाठ्यक्रम होंगे, हालाँकि कुछ पाठ्यक्रम पीजीपी/ईपीजीपी/पीजीपीईएम/पीजीपीपीएम पाठ्यक्रम हो सकते हैं ।
  • वैकल्पिक (अर्थात् संस्‍तुत) पाठ्यक्रम :: प्रत्‍येक क्षेत्र संस्तुत पाठ्यक्रमों का एक सेट भी निर्धारित करता है । उस क्षेत्र में छात्र इन पाठ्यक्रमों के एक उपवर्ग का चयन करते हैं । ऐसे पाठ्यक्रम छात्रों को विशेषज्ञता के उसके क्षेत्र और/या अन्‍य संबंधित क्षेत्रों में और विशेषज्ञता हासिल करने में समर्थ बनाते हैं, और/या अनुसंधान के प्रासंगिक उपकरणों के उनके ज्ञान को बढ़ाते हैं । इस श्रेणी में अनेक अन्‍य क्षेत्रों द्वारा प्रदान किए जाने वाले पाठ्यक्रम शामिल हो सकते हैं । किसी क्षेत्र द्वारा इन संस्‍तुत पाठ्यक्रमों में से कुछ को अविनिर्दिष्‍ट छोड़ा जा सकता है तथा इनको पूरी तरह छात्र की पसंद पर जा सकता है । उपर्युक्‍त दो श्रेणियों में से प्रत्‍येक श्रेणी में पाठ्यक्रमों की संख्‍या व्‍यक्तिगत क्षेत्रों की पसंद पर निर्भर होती है । जो कोर पाठ्यक्रम के रूप में वर्गीकृत होता है वह क्षेत्र के अनुसार भिन्‍न हो सकता है ।

छात्र पहले दो वर्षों के दौरान प्रत्‍येक वर्ष 2.75 की न्‍यूनतम जीपीए आवश्‍यकता के अधीन होंगे । पहले वर्ष की जीपीए आवश्‍यकता का मूल्‍यांकन उस वर्ष लिए गए सभी पाठ्यक्रमों पर आधारित होगा । ये परिवर्तन तत्‍काल प्रभाव से 2015 तथा इसके बाद के बैचों के छात्रों पर लागू होंगे ।

  • सामान्‍य दिशानिर्देश:
    • छात्र दो वर्ष के पाठ्यक्रम में 4 से अधिक पीजीपी/ईपीजीपी/पीजीपीईएम/ पीजीपीपीएम पाठ्यक्रम नहीं ले सकते हैं।
    • क्षेत्र (क) छात्र की पिछली शैक्षिक पृष्‍ठभूमि तथा (ख) चुनौती परीक्षा देकर उम्‍मीदवार के निष्‍पादन के आधार पर पाठ्यक्रमों में छूट प्रदान कर सकते हैं । छूट प्रक्रिया का आयोजन एफपीएम कार्यालय करता है ।
    • क्षेत्र एफपीएम समन्‍वयक और एफपीएम अध्‍यक्ष के अनुमोदन से एफपीएम में अपने कार्यकाल के दौरान छात्रों द्वारा देश के अंदर या बाहर अन्‍य संस्‍थाओं से पाठ्यक्रम किए जा सकते हैं ।

स्‍वतंत्र अध्‍ययन

छात्रों को पहले दो वर्षों के लिए, वर्ष 1 और 2 में लिए गए 18 पाठ्यक्रमों के अलावा स्‍वतंत्र अध्‍ययन (आईएस) करना होगा । प्रतिवर्ष अधिकतम 3 क्रेडिट के साथ आईएस की कुल 6 क्रेडिट लेनी होगी । प्रतिवर्ष तीन आईएस क्रेडिट की अवधियों में सटीक वितरण का निर्धारण संभवत: छात्रों की व्‍यक्तिगत आवश्‍यकताओं को ध्‍यान में रखकर व्‍यक्तिगत क्षेत्रों द्वारा किया जाएगा । उदाहरणार्थ, छात्र प्रत्‍येक अवधि में 1 आईएस क्रेडिट ले सकते हैं अथवा किसी एकल अवधि में 3 आईएस क्रेडिट कर सकते हैं । छात्रों के अनुसार आईएस प्‍लान भिन्‍न हो सकता है परंतु इसके लिए छात्र के क्षेत्र एफपीएम समन्‍वयक की सहमति आवश्‍यक है । प्रत्‍येक आईएस के अंत में, छात्र संकाय गाइड को अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करता है जिसमें इस बात का उल्‍लेख होता है कि उन्‍होंने वास्‍तव में क्‍या किया है/सीखा है ।

वर्षवार योजना

कार्यक्रम के प्रत्‍येक वर्ष के लिए उद्देश्‍य तथा अपनाई जाने वाली विधियों का उल्‍लेख नीचे किया गया है :

प्रथम वर्ष

  • प्रथम वर्ष में मुख्‍य उद्देश्‍य :
    • अनुसंधान में रूचि पैदा करना
    • विशेषज्ञता के क्षेत्र में सैद्धांतिक नींव रखना
    • विशेषज्ञता के क्षेत्र से संगत अनुसंधान के बुनियादी उपकरणों का ज्ञान प्रदान करना
    • छात्र को अनुसंधान की प्रक्रिया से परिचित कराना
  • इन उद्देश्‍यों को प्राप्त करने के लिए अपनाई जाने वाली विधियों में पाठ्यक्रमों का उपयुक्‍त संयोजन और अनुसंधान में भागीदारी होनी चाहिए । कोर, वैकल्पिक पाठ्यक्रमों और आईएस पाठ्यक्रमों के अलावा, एक प्रथम वर्षीय ग्रीष्‍म परियोजना तथा प्रत्‍येक उपसत्र के लिए अनुसंधान सहायता (आरए) की आवश्‍यकता होती है ।

द्वितीय वर्ष

  • द्वितीय वर्ष में उद्देश्‍य :
    • क्षेत्र संबद्ध सिद्धांत ज्ञान को गहन करना
    • कोर क्षेत्र में अनुसंधान प्रक्रिया में सार्थक क्षमता निर्मित करना
    • अनुसंधान का वास्‍तविक अनुभव प्रदान करना
  • इन उद्देश्‍यों को प्राप्त करने के लिए अपनाई जाने वाली विधियों में पाठ्यक्रमों का उपयुक्‍त संयोजन और अनुसंधान में भागीदारी होनी चाहिए । द्वितीय वर्ष में लिए गए कोर और वैकल्पिक पाठ्यक्रमों में पर्याप्‍त मात्रा में ऐसे पाठ्यक्रमों के शामिल होने की अपेक्षा होती है जिनसे विशेषज्ञता के क्षेत्र में मजबूत संकल्‍पनात्‍मक नींव का निर्माण हो, अनुसंधान के संगत उपकरणों के बारे में उनका ज्ञान बढ़े, तथा अग्रेतर विशेषज्ञता संभव हो । द्वितीय वर्ष के आईएस पाठ्यक्रमों को अनुसंधान के अनेक विषयों के निर्देशित, स्‍वतंत्र अन्‍वेषण और/या किसी एकल विषय के गहन अध्‍ययन का अवसर प्रदान करना चाहिए । एक द्वितीय वर्षीय ग्रीष्‍म पेपर तथा प्रत्‍येक उपसत्र के लिए आरए की भी आवश्‍यकता होती है ।
  • क्षेत्र व्‍यापक परीक्षा (लिखित एवं मौखिक) : द्वितीय वर्ष के लिए उत्‍तीर्ण होने की आवश्‍यकताओं को पूरा करने के अधीन, छात्र क्षेत्र व्‍यापक परीक्षा में बैठने के लिए पात्र होते हैं । व्‍यापक परीक्षा के लिखित भाग में छात्र की संकल्‍पना एवं प्रणाली संबंधी क्षमता तथा अपनी रूचि के क्षेत्र में स्‍वतंत्र अनुसंधान करने की सामर्थ्‍य का मूल्‍यांकन किया जाता है । यह प्रस्ताव के लिए “गेट” होता है ।
  • व्‍यापक परीक्षा के लिखित या मौखिक भाग में पहले प्रयास में अनुत्‍तीर्ण होने की स्थिति में, व्‍यापक परीक्षा की पुन: परीक्षा कराई जाएगी । यदि कोई छात्र पुन: परीक्षा अर्थात् दूसरे प्रयास में अनुत्‍तीर्ण हो जाएगा, तो उससे कार्यक्रम से हटने के लिए कहा जाएगा ।

तृतीय वर्ष से

  • तृतीय वर्ष: तृतीय वर्ष के दौरान डीएसी का गठन प्राथमिकता होती है। द्वितीय सत्र के अंत तक डीएसी का गठन हो जाना चाहिए । डीएसी इसके बाद छात्र की प्रगति की निगरानी करता है और सुनिश्चित करता है कि कोई प्रमुख विचलन न हो । डीएसी का गठन हो जाने पर, छात्रों को चाहिए कि वे एफपीएम कार्यालय को डीएसी द्वारा अनुमोदित सत्रवार प्‍लान प्रस्‍तुत करें । छात्र शोध प्रबंध अनुसंधान प्रस्‍ताव तैयार करने पर भी काम शुरू कर देते हैं । छात्रों से तृतीय वर्ष से प्रत्‍येक सत्र के लिए एक पाठ्यक्रम के लिए टीए होने की आवश्‍यकता होती है । छात्रों को किसी अंतर्राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन में पेपर प्रस्‍तुत करने का भी प्रयास करना चाहिए ।
     
  • चौथा वर्ष: छात्र को द्वितीय सत्र के अंत तक थीसिस प्रस्‍ताव जमा कर देना चाहिए । चौथे वर्ष तक छात्र को निश्चित तौर पर किसी सम्‍मेलन में पेपर प्रस्तुत कर देना चाहिए । चौथे वर्ष के अंत तक, छात्र को अपने शोध प्रबंध अनुसंधान प्रस्ताव को पूरा करने की दिशा में उल्‍लेखनीय प्रगति (डाटा संग्रहण एवं विश्‍लेषण) कर लेनी चाहिए । छात्रों को चाहिए कि वे वर्ष के शुरू में एफपीएम कार्यालय को डीएसी द्वारा अनुमोदित सत्रवार प्‍लान प्रस्‍तुत करें । डीएसी को छात्र की प्रगति की निगरानी करनी चाहिए ।
     
  • पाँचवाँ वर्ष: छात्र से प्रथम सत्र के अंत तक डीएसी को शोध प्रबंध का पहला ड्राफ्ट प्रस्‍तुत करने की अपेक्षा होती है । सामान्‍यतया यह अपेक्षित होता है कि पहले ड्राफ्ट की गुणवत्‍ता पर्याप्‍त स्‍तर की हो ताकि पहला ड्राफ्ट प्रस्‍तुत करने के तीन माह के अंदर अर्थात द्वितीय उपसत्र के अंत तक अंतिम, परीक्षक के लिए तत्‍पर ड्राफ्ट तैयार करने के लिए छात्र द्वारा डीएसी से फीडबैक को समाविष्‍ट किया जा सके । छात्र को शैक्षिक वर्ष में दीक्षांत समारोह के लिए विचार किए जाने के उद्देश्‍य से फरवरी के अंत तक शोध प्रबंध अनुसंधान प्रस्ताव का सफलतापूर्वक बचाव करने का प्रयास करना चाहिए ।